श्रीमद्भगवद्गीता का ज्ञान कोई शब्दिक चर्चा या सैद्धांतिक ज्ञान नहीं बल्कि रणक्षेत्र में खड़े एक योद्धा के लिए कहे गए शब्द हैं। भगवद्गीता का जन्म किसी शान्त, मनोरम जंगल में नहीं, बल्कि कुरुक्षेत्र के मैदान में हुआ था। अर्जुन के सामने एक तरफ धर्म था तो दूसरी तरफ नात-रिश्तेदार और गुरुजनों का मोह। बड़ा कठिन था अर्जुन के लिए निर्णय लेना। अर्जुन कोई जीवन से विरक्त शिष्य नहीं था, जो संसार का मोह त्यागकर कृष्ण के पास आया हो। वह युद्ध के मैदान में खड़ा था। उसे निर्णय करना था कि युद्ध करे कि ना करे। अर्जुन ने धर्म नहीं बल्कि मोह और स्वार्थ चुना था। कृष्ण के समक्ष एक ऐसा हठी शिष्य था जो सुनने को राजी नहीं था क्योंकि अर्जुन का भी मन एक साधारण मन ही था, अपनों पर बाण चलाना उसके लिए आसान नहीं था। श्रीमद्भगवद्गीता के अट्ठारह अध्याय कृष्ण द्वारा हठी अर्जुन को मनाने का प्रयास हैं। हमारी भी स्थिति अर्जुन से अलग नहीं है। हमारे भी जीवन में ऐसे क्षण आते हैं जहाँ निर्णय लेना आसान नहीं होता। यदि हमें कृष्ण का साथ नहीं मिला तो जीवन के कुरुक्षेत्र में हम हार ही जाएँगे क्योंकि कृष्ण के बिना जीत अंसभव है। आचार्य प्रशांत की यह पुस्तक 'श्रीमद्भगवद्गीता' आपके लिए इसीलिए प्रकाशित की गई है ताकि आप अपने जीवन में कृष्ण का संग पा सकें।
Author(s): Acharya Prashant
Publisher: PrashantAdvait Foundation
Year: 2021
Language: Hindi
Pages: 322
1. अर्जुन की निरपेक्षता (श्लोक 1.20-1.22)
2. क्या कृष्ण भी पापी हुए? (श्लोक 1.36)
3. पाप माने क्या? क्या मात्र स्त्रियाँ ही पापी हैं? (श्लोक 1.40-1.41)
4. कृष्ण की बात हम समझ क्यों नहीं पाते? (श्लोक 2.12)
5. हमारे सुख की सच्चाई (श्लोक 2.15)
6. आत्मा और जीवात्मा से जुड़ा सबसे बड़ा भ्रम (श्लोक 2.22)
7. असली ब्राह्मण कौन? (2.11, 2.46)
8. मेरो तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई (श्लोक 2.66)
9. असली लड़ाई अपने ही विरुद्ध लड़ी जाती है (श्लोक 2.32)
10. घटनाएँ बहाएँगी, तुम अडिग रहना (श्लोक 2.56)
11. बुद्धि को चाहिए तो कृष्ण ही (श्लोक 2.66)
12. यज्ञ का असली अर्थ समझो (श्लोक 3.9)
13. ऐसा कर्म जो आज़ादी दे दे (श्लोक 3.5)
14. जहाँ आसक्ति, वहाँ दुःख (श्लोक 3.15)
15. परधर्म भयावह है (श्लोक 3.35)
16. इन्द्रियों पर विजय कैसे प्राप्त करें? कर्म और अकर्म क्या? (श्लोक 4.39)
17. जिज्ञासा करो, संशय नहीं (श्लोक 4.40)
18. उस आख़िरी चाहत को चाहो (श्लोक 4.14)
19. कृष्ण की लीला ही माया है (श्लोक 4.6)
20. ज्ञानयोग और कर्मयोग (श्लोक 5.5)
21. शांत मन को कैसे प्राप्त हों? (श्लोक 5.25)
22. मन को समभाव में स्थित कैसे करें? (श्लोक 5.11)
23. संसार से विरक्त कैसे हों? (श्लोक 5.24)
24. ममत्वबुद्धिरहित माने क्या? (श्लोक 5.11)
25. क्या मात्र आस्था काफ़ी है? (श्लोक 6.37)
26. बिना संकल्प आगे कैसे बढ़ें? (श्लोक 6.2)
27. श्रीकृष्ण के सिवा और कोई मित्र नहीं (श्लोक 6.9)
28. करने योग्य काम कौनसा? (श्लोक 6.1)
29. एकाकी रहो, कृष्ण के साथ रहो (श्लोक 6.10)
30. सपने से बाहर आओ, स्वयं का अवलोकन करो (श्लोक 6.3)
31. कृष्ण का नित्य स्मरण कैसे किया जाए? (श्लोक 7.3)
32. पंचभूत नहीं, अष्टांग! (श्लोक 7.4-7.5)
33. याद रखने योग्य एक बात (श्लोक 8.14)
34. व्यर्थ का ज्ञान ही बंधन है (श्लोक 9.2, 9.4)
35. कृष्ण: देहधारी भी और देह के पार के भी (श्लोक 9.11)
36. कृष्ण ही ब्रह्म, कृष्ण ही माया (श्लोक 9.19)
37. संसार की सारी उपलब्धि कृष्ण के बिना व्यर्थ है (श्लोक 9.20)
38. तुम बस कृष्ण को चुन लो, बाक़ी वो चुन लेंगे (श्लोक 9.22)
39. कृष्ण के अलावा कुछ और माँगोगे तो फँस जाओगे (श्लोक 9.25)
40. ऐसा कारोबार करो जो कृष्ण तक पहुँचा दे (श्लोक 9.26)
41. बदनीयती और बेहोशी साथ-साथ चलती हैं (श्लोक 9.27)
42. ग्रंथों में नारियों को सम्मान क्यों नहीं देते? (श्लोक 9.32)