Ghar Ghar Upanishad - Sarvasar Upanishad Bhashya by Acharya Prashant

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सनातन धर्म क्या? इस प्रश्न का कोई सीधा सही और सन्तोषप्रद उत्तर हमें सुनने को नहीं मिलता। तो आज हम स्पष्टता, सत्यता और साहस के साथ आपसे कह रहे हैं कि जो वेदान्त को जानता-मानता है वो ही सनातनी है। हमारी यह बात एक निर्भीक घोषणा है उन सब दुष्प्रचारों के विरुद्ध जो कहते हैं ~ हर गाँव, हर शहर में बदलने वाली उथली मान्यताओं का पालन करने से आप सनातनी हो जाते हैं। ~ होली दीवाली मनाने से आप सनातनी हो जाते हैं। ~ किसी भी छोटे-मोटे ग्रन्थ का वेदार्थ-विहीन पालन करने से आप सनातनी हो जाते हैं। ~ जातिवाद या कर्मकांड का पालन करने से आप सनातनी हो जाते हैं। ~ पौराणिक कथाओं में विश्वास करने से आप सनातनी हो जाते हैं। ~ सनातनी घर में पैदा होने से सनातनी हो जाते हैं। नहीं! उपरोक्त में से कोई भी बात अपनेआप में आपको सनातनी कहलाने में पर्याप्त नहीं है। सनातन धर्म वैदिक है, और वेदों का मर्म है वेदान्त में। धर्मसम्बन्धी किसी भी बात के मान्य और स्वीकार्य होने के लिए जो श्रुतिप्रमाण आवश्यक है, वो श्रुतिप्रमाण भी व्यावहारिक रूप से वेदान्तप्रमाण ही है। धर्म बिना ग्रन्थ के नहीं चल सकता, धर्म बिना ग्रन्थ के होगा तो उसमें सिर्फ़ लोगों की अपनी-अपनी मनमानी चलेगी। मनमानी चलाने को धर्म नहीं कहते। अब्राहमिक पंथों के पास तो अपने-अपने केन्द्रीय ग्रन्थ हैं ही। भारतीय धर्मों में भी बौद्धों, जैनों, सिखों के पास भी अपने सशक्त व निर्विवाद रूप से केन्द्रीय ग्रन्थ हैं। ग्रन्थ से ही धर्म को बल, स्थायित्व और आधार मिलता है। क्या हम धम्मपद के बिना बौद्धों की और गुरु ग्रन्थ साहिब के बिना सिखों की कल्पना भी कर सकते हैं? सनातन धर्म आज हज़ार हिस्सों में बँटा हुआ है। उसके अनुयायी बहुधा भ्रमित और दिशाहीन हैं। धर्म के शत्रु सनातन धर्म की दुर्बलता का लाभ उठाकर धर्म की अवहेलना और अवमानना करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। धर्म का अर्थ रूढ़ि, मान्यता, और त्योहार बनकर रह गया है। ऊपर-ऊपर से तो सनातनी सौ करोड़ हैं, लेकिन ध्यान से भीतर देखा जाए तो स्पष्ट ही है कि धर्म के प्राणों का बड़ी तेज़ी से लोप हो रहा है। लोग बस अब नाम के सनातनी हैं। यही स्थिति दस-बीस साल और चल गयी तो धर्म के हश्र की कल्पना भी भयावह है। हम बिना किसी लाग-लपेट के साफ़ घोषणा करते हैं: धर्म को बचाने का एकमात्र तरीक़ा है, धर्म के केन्द्र में उच्चतम ग्रन्थ को प्रतिष्ठित करना। वो उच्चतम ग्रन्थ उपनिषद् हैं, और सनातनी होने का अर्थ ही होना चाहिए वेदान्ती होना। जो वेदान्त को न पढ़ते हैं, न समझते हैं, वे स्वयं से पूछें कि वे किस धर्म का पालन कर रहे हैं। पुराणों, महाकाव्यों, व स्मृतियों को भी उपनिषदों के प्रकाश में ही पढ़ा जाना चाहिए, और यदि स्मृतियों आदि के कुछ अंश उपनिषदों के विरुद्ध हैं तो हमें तत्काल उन्हें त्याग देना चाहिए। प्रतिवर्ष 1 अक्टूबर को 'वेदान्त दिवस' के रूप में मनाया जाएगा। यह वैसे भी विचित्र भूल थी कि हर छोटी-मोटी चीज़ के उत्सव के लिए साल का एक दिन निश्चित किया गया लेकिन उच्चतम, अपौरुषेय वेदान्त की याद और उत्सव के लिए कोई दिन ही नहीं! हम प्रस्ताव करते हैं कि आज के दिन आप उपनिषदों के सुप्रसिद्ध शान्तिपाठ: ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पुर्णमुदच्यते पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः।। के अर्थ पर ध्यानपूर्वक मनन करें व श्लोक को कंठस्थ भी कर लें। प्रण करें कि अगले एक वर्ष में आप कम-से-कम चार उपनिषदों को मूल अर्थ सहित ग्रहण करेंगे। आपका काम आसान बनाने के लिए हमने ‘घर घर उपनिषद्’ नाम का प्रखर अभियान प्रारम्भ किया है। हमारा प्रण है 20 करोड़ घरों तक व्याख्या समेत उपनिषद् को पहुँचाना। अपनी आँखों के सामने धर्म का निरन्तर क्षय और अपमान सहने की बात नहीं। सनातन धर्म जिस उच्चतम स्थान का अधिकारी है उसे वहाँ बैठाना ही होगा। हमारे सामने ही अगर समाज और देश से धर्म का लोप हो गया तो हम स्वयं को कैसे क्षमा करेंगे? इस मुहिम का आरम्भ भले ही एक व्यक्ति या एक संस्था द्वारा हो रहा हो पर वास्तव में यह अभियान मानवता को बचाने का अभियान है। सच तो यह है कि सम्पूर्ण विश्व में जहाँ कहीं भी जो कुछ भी उत्कृष्ट और जीवनदायक है उसके मूल में कहीं-न-कहीं वेदान्त ही है। वेदान्त की पुनर्प्रतिष्ठा जीवन की पुनर्प्रतिष्ठा होगी। साथ दीजिए।

Author(s): Acharya Prashant
Publisher: ‎PrashantAdvait Foundation
Year: 2023

Language: Hindi
Pages: 94
City: New Delhi

1. उपनिषद् क्या हैं?
2. उपनिषदों का व्यापक महत्व
3. वेदान्त ही सनातन धर्म है
4. संस्कृति व धर्म
5. वेदान्त के प्रमुख सूत्र
6. १०८ उपनिषदों की सूची
7. वेदान्त की अन्य प्रमुख पुस्तकें
8. वेदांत ग्रन्थ जिनपर आचार्य प्रशांत की व्याख्या उपलब्ध है
9. सम्पूर्ण सर्वसार उपनिषद्
10. शांतिपाठ
11. बंधन क्या है? मुक्ति क्या है? (श्लोक १-२)
12. विद्या और अविद्या किसको कहते हैं? (श्लोक ३)
13. जाग्रत्, स्वप्न, सुषुप्ति और तुरीय - ये चार अवस्थाएँ क्या हैं? (श्लोक ४)
14. अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय और आनंदमय कोशों का परिचय क्या है? (श्लोक ५)
15. कर्ता कौन है? जीव कौन है? (श्लोक ६)
16. पंचवर्ग क्या है? (श्लोक ७)
17. क्षेत्रज्ञ क्या है? साक्षी क्या है? (श्लोक ८-९)
18. कूटस्थ और अन्तर्यामी क्या हैं? (श्लोक १०-११)
19. प्रत्यगात्मा क्या है? परमात्मा क्या है? (श्लोक १३)
20. माया क्या है? (श्लोक १५)
21. उपसंहार (श्लोक १६-२१)